730 टन कीटनाशक खेतों से नदियों में जा कर बना रहे जहर, भारत में खेती कैसे बन रही जानलेवा।
1 min readहाल ही में 92 तरह के रेस्टॉरेंट पर शोध किया गया, जिसमें पाया गया कि रेस्टॉरेंट लॉन्ग डिस्टेंस तक की यात्रा हर साल करते हैं, जो हर साल कुल 730 टन इस तरह के रेस्टॉरेंट से नदियों में जाते हैं।
हर साल हजारों टन प्लांट जमीन में चढ़े हुए हैं। कई रिपोर्टों में कहा गया है कि ये रेस्टॉरेंट ज़मीन से नदियाँ निकलती हुई समुद्र में पहुँच रही हैं। जो विश्व भर में खेती योग्य भूमि बंजर होने के कारण शेष पर खड़ी है। 1930 के दशक से रासायनिक रसायनों ने किसानों की मदद के लिए फसल उत्पादन में वृद्धि की है। अब इसी तरह की रासायनिक रासायनिक खेती में जमीन में जहर उगना शामिल है।
ताज़ा रिसर्च में 92 तरह के रेस्टॉरेंट पर शोध किया गया, जिसमें पाया गया कि रेज़ॉलूशन लंबी दूरी तक की यात्रा करते हैं। हर साल इसी तरह के कुल 730 टन किचन प्लांट से नदी में निकलते हैं।
गेहूं पर रासायनिक रसायनों का उपयोग अतिरिक्त मानक का गुणनखंड के रूप में होता है। ये जलमार्गों पर खतरनाक दिखते हैं। ये पानी में जा कर पोषक तत्व और ऑक्सीजन की मात्रा कम कर देते हैं। पानी में रहने वाले स्थिर जीव बचे हुए ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं। ऑक्सीजन की कमी से मछलियाँ भी मर रही हैं।
मसालों के इस्तेमाल पर करीब से नजर डालने से पता चलता है कि हम ज्यादातर रासायनिक रसायनों का इस्तेमाल कर रहे हैं और पहले कहीं-कहीं मसालों के इस्तेमाल पर करीब से नज़र डाली जाती है। एफए ऑपरेटिंग सिस्टम के अनुसार 1996 और 2016 के बीच रसायन शास्त्र के उपयोग में 46% की वृद्धि हुई है।
ऑर्गैनो सासाइटिक, कार्बामेट और पाइरेथ्राइड प्लांट सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले प्लांट हैं। ग्लोबल बेस पर हर साल 730 टन लिपस्टिक का उपयोग खेती में किया जाता है। ये रसायन अलग-अलग पैमाने पर मिट्टी में जहर घोलने का काम कर रहे हैं। इनमें से कुछ बेहद खतरनाक माने जाते हैं जो पानी में लंबी दूरी तक का सफर करते हैं।
भारत में लगातार बढ़ती महंगाई का इस्तेमाल किया गया
भारत में 2013 के बाद से खेती में मसालों का उपयोग 5,000 टन टन से लगातार हुआ है। भारत में ये अनुमान सैकड़ों गुना ज्यादा है.
पिछले सात दशकों में ये रुझान सबसे ज़्यादा बढ़ा। 1953-54 में 154 टन टन से 2016 में 57,000 टन टन रीजन का उपयोग बढ़ाया गया। भारत में बड़े पैमाने पर निम्न श्रेणी के कीटनाशकों का उपयोग किया गया और जागरूकता की कमी के कारण खेती की जमीन को भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।
2016-17 के दौरान महाराष्ट्र में मसालों की कुल आबादी सबसे ज्यादा थी। इसके बाद उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा थे। पंजाब में प्रतिरासायनिक प्लास्टिक का प्रयोग सबसे अधिक किया जाता था। इसके बाद हरियाणा और उत्तर प्रदेश में प्रति लिपस्टिक लिपस्टिक का इस्तेमाल सबसे ज्यादा हुआ। भारत के रासायनिक रेस्तरां का 41% है। भारत में 70% से अधिक फसल संरक्षण दस्तावेज़ का उपयोग किया जाता है।
उत्पाद एवं परामर्श केंद्र (सीआईबीआरसी) के 970 उत्पाद पंजीकृत हैं। 2012-2013 में प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार बायोपेस्टिसाइड का प्रयोग 1994-1995 में 123 सैक्स टन (डाइम) से 2011-2012 में 8110 सैक्स टन हो गया। हाल ही में जारी किए गए पीपीक्यूएस के आंकड़ों के अनुसार भारत में 2014-2015 से 2022-23 तक 41% की बढ़ोतरी हुई है।
लगातार बढ़ते रसायन के प्रयोग से किसे हो रहा नुकसान
खेती की जमीन में सबसे ज्यादा नुकसान धरती को हो रहा है। खेती के सर्वाधिक उपयोग से धरती का गंधक खत्म हो रहा है और धरती धंस रही है। भारत में पृथ्वी के धंसने का सबसे बड़ा खतरा दस राज्यों में है। जहां पर मस्टेक्ट का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है। इनमें महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, पंजाब, तेलंगाना, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, तमिल नाडु, राजस्थान, गुजरात शामिल हैं।
भारत में सिंधु-गंगा के मैदानी इलाके में धरती का धन बरस रहा है। वहीं दिल्ली, हरियाणा, आंध्रा, असम में भी भीषण गर्मी पड़ रही है। शैक्षणिक संस्थान की धरती के धंसने की सबसे पहली घटना 1990 के कैलिफोर्निया में हुई थी। जकार्ता दुनिया में सबसे तेजी से धंसता शहर बन रहा है।
कृषकों के उपयोग से कुल 2.45 करोड़ कृषि योग्य भूमि खतरे में है। 31 फीसदी दुनिया की कुल जमीन गंभीर खतरे का सामना कर रही है।
खेती में रसायन का प्रयोग अब अभिशाप बन चुका है। मिट्टी, पानी, हवा और खाद्य पदार्थ अपशिष्ट हो रहे हैं। विविधता सहित ये इंसान भी हैं खतरनाक. बड़े पैमाने पर उद्यमों की साज़िश भूमि के बड़े पैमाने पर बनाई जाती है।
इसलिए उनका पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है। शोध से पता चला है कि 95 प्रतिशत से अधिक शाकनाशी और 98% से अधिक मस्क़िटाल कीट तक नहीं हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि रसायन विज्ञान को भूमि के बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है और वे हवा और पानी के तटों से दूर चले जाते हैं। जो पानी में मिलकर जमीन को बंजर कर देते हैं।
इस शोध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ दोनों ने ऑर्गेनो साज़िश और कार्बामेट औषधियों का प्रयोग बंद कर दिया है, जो सभी औषधियों में से सबसे अधिक कीटनाशक हैं।
मिट्टी पर रसायन का प्रभाव
एक बार लीची के बाद मॅस्टीकॅस्ट मिट्टी में चले जाते हैं। यहां पर यह बेहद ही खतरनाक है। इन इफेक्ट्स में सबसे खतरनाक बात यह है कि प्लास्टिक मिट्टी में जैव विविधता को नुकसान पहुँचाते हैं। इसका मतलब यह है कि मिट्टी की गुणवत्ता कुल मिलाकर कम हो जाती है और वह कम गुणवत्ता वाली बन जाती है।
इसके अलावा यह पदार्थ पदार्थ का एक बड़ा हिस्सा हटा दिया जाता है। कार्बनिक पदार्थ मिट्टी में पानी बनाए रखने में मदद करते हैं, जो किसानों के लिए बेहद सहायक हो सकते हैं, विशेष रूप से किसानों के दौरान |
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