बचपन से चुनौतियों का सामना करने वाली उषा बनी शिक्षा की गुरू।
1 min readखुद के साथ समाज का विकास करने के उद्देश्य से उषा मेसरेजी ने स्कुल का निर्माण किया जहाॅ सेकडों छात्रों को संस्कार के साथ शिक्षा दी जाती है –
उषाजी का जनम एक छोट से गांव में हुआ, जहाॅ शहर से गांवतक पहुॅंचनेवाली सडकें बडी मुश्कील से नजर आती थी, उस समय गांव में स्कुल की पढाई केवल 7 वी कक्षातक ही सिमीत थी, उस समय उन्हे आगे की पढाई करने के लिए गांव से दुर 6 कि.मी. पैदल चलकर जाना पडता था! उषाजी का जनम एक छोटे से गांव में गरीब परीवार मे हुआ था! बचपन में उन्हें सुबह 6 बजे खेतों में काम करने जाना होता था, और 10 बजे वापस आकर स्कुल की तैयारी करनी होती थी, उन्हें खेती मे काम करने के लिए केवल 10 रूपेये मिलते थे! उन्हें 11 बजे ही घरसे निकलना होता था ताकी 12 बजेतक वे स्कुल पहुॅंच सके, 12 वी कक्षातक उन्हें स्कुल में पैदल ही जाना पडा, और एैसे मुश्किल हालात होते हुए भी उन्होंने स्कुल में पहला नंबर हासील कीया, उस समय गांव के सभी बडेबुर्जूगोनें उन्हें बधाई दी और उनकी सफलता के लिए सभीने उनकी सराहना की!
12 वी कक्षा की पढाई करने के बाद आगे की पढाई के लिए उनके सामने बडा सवाल खडा था! क्योकी गांव से दुर जाकर ही आगे की पढाई करना संभव था! बडी मुश्किल दौर मे उन्होंने अमरावती में अडमीशन लिया! उस समय कभी रिक्षा तो कभी कीसी के सहारे वे स्कुल जाने लगी, उस समय खेती में काम करके मिलने वाले पैसोपर ही वे निर्भर थी! क्योंकी घर की परिस्थिती इतनी खास नही थी!
जब पढाई के दौरान परिक्षा का समय आया तो उस दिन उन्हे परिक्षा के लिए कोई गाडी नही मिल रही थी, उस दिन दुर्भाग्य से उनका पेहला पेपर वे नही दे पाई, उसके बाद उन्होंने 2 पेपर दिए! उसके बाद उनके पढाई का एक साल बरबाद हो गया! उस समय वे बडी ही मुश्किल हालातों से गुजर रही थी, उन्हें पढाई में बोहत रूची थी, उन्हें आगे पढाई करने की जिद भी थी! उन्हे आगे का रास्ता नजर नही आ रहा था! उसी दौरान उनकी मौसी, जो अकोला में रहती थी वे उनके घर आई थी! उन्होंने मौसी के केहने पर अकोला की काॅलेज मे अडमीशन लिया और केवल परिक्षा के समय ही वे काॅलेज जाने लगी, बाकी पढाई वे घरपर ही किया करती थी |
उनके जिवन में हर घडी मुश्किलों का दौर आता रहा, उन्हे पढाई के दौरान कई चुनौतियों का सामना करना पडा! काॅलेज के आखरी साल की परिक्षा उन्हें देनी थी! उसी दौरान उनके लिए शादी का प्रस्ताव आया , नजदी की रिश्तेंदारी में उनके शादी की बात चल रही थी और देखते ही देखते रिश्ता पक्का हो गया और शादी भी हो गई |
शादी के बाद उषा जी घर परीवार की जिम्मेंदारीयों मे खो गई, घर परिवार बच्चे यही उनके जिदंगी का मकसद बन गया, वे पुणे में अपने परिवार के साथ बेहद खुश थी! लेकीन मन ही मन कुछ था जो उन्हें बैचेन कर रहा था! उन्होंने जिस संघर्ष के साथ उनकी पढाई का सफर शुरू कीया था , उन्हें बारबार आखो के सामने नजर आ रहा था! उन्हें पढाई के क्षेत्र में कुछ कर दिखाने की चाहत थी! एक पत्नी, माॅ, बहु के रूप उन्होंने सारी जिम्मेंदारीया बखुबी निभाई थी, अब उन्हें उनके सपनों के लिए एक कदम बढाना था , तो उन्होंने एक नजदीकी स्कुल में निशुल्क ही बच्चों को पढाने का काम स्विकार कीया , क्योकी उन्हें बच्चों को पढाना बोहत अच्छा लगता था!
उन्हें इस बात पर पुरा भरोसा था की एक शिक्षक ही अच्छी पीढी बना सकता है , वे स्कुल में पुरीत रह जिजान से काम करने लगी , कडी मेहनत और लगन के बावजुद उनके काम की सराहना नही हो रही थी! तो उन्हें समाज के प्रती लगाव बढने लगा! उन्हें पढाई के क्षेत्र में कुछ कर दिखाना था!
बचपन से ही उन्हें समाजसेवा में अधीक रूची थी, उस समय वे कुछ नही कर पाए और अब जाॅब करके भी कुछ नही कर पा रही थी , तो उन्होंने जाॅब छोड दिया और खुदका एक डे.केअर शुरू कीया, अपनी 4 सहेलियो के साथ मिलकर उन्होंने ये कदम उठायाॅ क्योंकी उन्ही की तरह ज्ञान और पढाई में वे सब अव्वल थी और कुछ कर दिखाने का जज्बा रखती थी! उस समय उदयोग शुरू करने के लिए पर्याप्त धन नही था तो उनके पती ने उन्हे सहयोग दिया! उसके बाद खुद के भरोसे उन्होंने आगे बढने का फैसला लिया, और डे केअर शुरू किया गया, कुछ महिने बित गए लेकीन वे रेंट के लिए भी पैसे नही जुटा पा रहे थे! बिना कीसी लाभ के कोई भी काम नही करना चाहता, उनके डे केअर की हालत देखकर दो सहेलीयोंने 6 महीनें के बाद बिचमें ही साथ छोड दिया!
उषा जी अपनी एक सहेली की साथ मिलकर डे केअर चलाती रही, कुछ महीनों बाद जब वे दुसरे बच्चो को जनम देनेवाली थी, तो बडी ही बैचेन होती थी लेकीन ऐसी हालत में भी उन्होंने डे केअर बंद नही होने दिया! डिलीव्हरी के बाद घर, बच्चे को संभालते हुए उन्होंने डे केअर शुरू रखा! क्योकी उन्हें किसी भी हाल में जिंदगी से हार नही माननी थी!
दो साल निरंतर सेवा और प्रयास के बाद उन्होंने खुद का स्कुल निर्माण करने का संकल्प लिया और उन्हें उनके घर परीवार में सभी का साथ मिला, उन्होंने उनकी सारी जमापुॅंजी इसी काम में लगाने का फैसला लिया, और उॅची उडान लेने के लिए वे तैयार हो गई, हर प्रकार की पढाई और जानकारी जुटाना शुरू कीया, रात रात भर जागते हुए नए नए संकल्प बनाते रहे और उन्हें पुरा करने का प्रयास भी करते रहे!
अंततः सारी मुसीबते पार करने के बाद उनके गुरू ग्लोबल स्कुल का निर्माण किया गया , उन्होंने कडी मेहनत लगन और इमानदारी से अपनी सारी पूंजी लगाकर इस स्कुल को शुरू किया! उनकी सहेली जो हमेशा हर कदम उनका साथ देती थी वे उनके साथ पार्टनरशिप में काम करने लगी! उन्हें अपनी सहेलीपर पुरा भरोसा है, और उन्हे इस बात का भी यकीन है की एकदीन वे सफलता का मुकाम जरूर हासील करेंगे , और स्कुल का नाम रोशन करेंगे!
यदी कीसी इन्सान के अंदर हुनर है तो उसे सहयोग की जरूरत होती है, यदी उसे सच्चा साथ और सही दिशा मीले तो वे असंभव को भी संभव बना सकते है , एक एकेला इन्सान तो विकास की राहपर चल सकता है लेकीन अगर
सभी साथ मिलकर चले तो सफलता का रास्ता आसान हो जाता है , और हम एकसाथ मिलकर अपनी मंजील तक जरूर पहुंच सकते है!
स्कुल शुरू होने के 2 महीने बाद ही कोराना की महामारी ने अपना कहर दिखाया! अभी तो अडमीशन प्रोसेस शुरू होनी थी, और सबकुछ रूक गया! जिवन की सारी पुॅंजी उषाजीने स्कुल के लिए लगाई थी! उस समय अडमीशन के लिए काफी प्रयास किए गए, रात रात भर जागकर कई प्रकार की पोस्ट बनाई गई! लोगों को सोशल मेडिया के जरीए सारी जानकारी भेजने की प्रक्रीया की गई! कई प्रयासों के बावजुद एक भी एडमीशन नही हुआ, उस वक्त निराशा के भंवर से निकलना बडा ही मुश्किल लग रहा था, लेकीन जिद और मेहनत से सकारत्मकता की राहपर उषाजी चलती रही और उन्होंने एक रास्ता खोज निकाला और अक्टीव्हीटी क्लासेस की शुरूआत की, मात्र 300 रूपये लेकर आनलाईन क्लासेस शुरू हो गए! लेकीन किराये के लिए पैसे जुटाना मुश्किल हो रहा था! उस समय पुरीतरह निराश होकर उषाजी के मन में नकारात्मक विचार आने लगे, और उन्हें कई बिमारीयों का सामना करना पडा लेकीन फिर भी उन्होंने अपना संकल्प टुटने नही दिया वे निरंतर प्रयास करते रहे!
उस समय उन्होंने पॅरेंन्टस के केहने पर घरपर ही क्लासेस लेना शुरू किया, अक्टीवीटी क्लासेस और अबॅकस क्लासेस चलाने के बावजुद उन्हें पैसों की तंगी मेहसुस होती थी, फिर भी बिना रूके वे काम करती रही क्योंकी उन्होंने जिवन से कभी ना हारने का वादा किया था |
उन्होंने ठान लिया था जबतक ना सफल हो प्रयास करते रेहना चाहीए और वे बिना थके निंरतर सभी चुनौतियों का सामना करते रहे! उसी दौरान हरसाल 5 से 6 लडकों को निशुल्क पढाने का काम भी उन्होंने किया , उनका मानान है जैसे एक बच्चा वैसे एक पेड लगाना जरूरी है!
वे अपने सभी बच्चों को अच्छे संस्कार देने का काम करती है , माता पीता के प्रती उनके मन में आदर निर्माण करने के लिए कई गतिवीधीयाॅ उनके स्कुल मे की जाती है!
उनका संकल्प है जो बच्चे पढाई करना चाहते है लेकीन पैसो के अभाव से वे पढ नही सकते उनके लिए निशुल्क पढाई की व्यवस्था करना , कुद्रत के प्रती बच्चों के मन में उपकार की भावना जागृत करने का काम भी उनके माध्यम से कीया जाना है , साथ ही महिलाओं को अच्छा रोजगार दिलाने की कोशिष उनके माध्यम से करने का इरादा है! स्कुल में बच्चों को सभी प्रकार की शिक्षा देने का संकल्प है , उन्हें पुरानी किताबे जो हर साल रद्दी के भाव बेचे जाते है उन्हें बचाना है और जरूरतमंद छात्रों को लाभ दिलाना है, जिससे लोगों के हजारो रूपयें बचाने में वे एक मजबुत कदम उठा सके!
उषा जी ने अपने जिवन में जो संघर्ष कीया, जीन चुनौतीयों का सामना किया और सभी समस्याओं का समाधान ढुंडते हुवे बिना रूके निरंतर चलते रही और सफलता की राहपर खुद को साबित कीया, उन्हांनेे उनके पेहले गुरू यानी उनकी माॅ शुशीला रमेश श्रीनाथ जी को उनकी सफलता सर्मपीत की है , हम रिसील की और से उनके कार्य को सलाम करते है |
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